February 13, 2010

"जान भर रहे हैं जंगल में" - बाबा नागार्जुन

"जान भर रहे हैं जंगल में"
गीली भादों
रैन अमावस

कैसे ये नीलम उजास के
अच्छत छींट रहे जंगल में
कितना अद्भुत योगदान है
इनका भी वर्षा-मंगल में
लगता है ये ही जीतेंगे
शक्ति प्रदर्शन के दंगल में
लाख-लाख हैं, सौ हज़ार हैं
कौन गिनेगा, बेशुमार हैं
मिल-जुलकर दिप-दिप करते हैं
कौन कहेगा, जल मरते हैं
जान भर रहे हैं जंगल में

जुगनू है ये स्वयं प्रकाशी
पल-पल भास्वर पल-पल नाशी
कैसा अद्भुत योगदान है
इनका भी वर्षा मंगल में
इनकी विजय सुनिश्चित ही है
तिमिर तीर्थ वाले दंगल में
इन्हें न तुम 'बेचारे' कहना
अजी यही तो ज्योति-कीट हैं
जान भर रहे हैं जंगल में

गीली भादों
रैन अमावस

[ रचनाकार: - बाबा नागार्जुन ]

3 comments:

  1. I want summary and analysis of the poem "Jaan bhar rahe jungle mein "

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  2. I want summary and analysis of the poem "Jaan bhar rahe jungle mein "

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