January 21, 2010

" कालिदास, सच-सच बतलाना !" - बाबा नागार्जुन

" कालिदास, सच-सच बतलाना !"
इंदुमती के मृत्यु -शोक से
अज रोया या तुम रोए थे ?
कालिदास, सच-सच बतलाना!
शिवजी की तीसरी आँख से
निकली हुई महाज्वाला में
घृतमिश्रित सूखी समिधा सम
तुमने ही तो दृग धोए थे
कालिदास, सच-सच बतलाना !
रति रोई या तुम रोए थे?
वर्षा -ऋतु की स्निग्ध भूमिका
प्रथम दिवस आषाढ़ मास का
देख गगन में श्याम घनघटा
विधुर यक्ष का मन जब उचटा
चित्रकूट के सुभग शिखर पर
खड़े-खड़े तब हाथ जोड़कर
उस बेचारे ने भेजा था
जिनके ही द्वारा संदेशा,
उन पुष्करावर्त मेघों का
साथी बनकर उड़ने वाले
कालिदास, सच-सच बतलाना !
पर-पीड़ा से पूर-पूर हो
थक-थक कर औ ' चूर-चूर हो
अमल-धवलगिरि के शिखरों पर
प्रियवर तुम कब तक सोए थे ?
कालिदास, सच-सच बतलाना !
रोया यक्ष कि तुम रोए थे ?

[ रचनाकार: - बाबा नागार्जुन ]

2 comments:

  1. Aasheesh ji,
    Achaanak "kaalidaas sach sach batlaana..." par nazar padi toh mujhe "Vasudha" me prakashit apni kahani 'Baadal ko ghirte dekha hai" yaad aa gayi. usme "kalidaas sach sach batlaana" aur, Baba ki doosri kai kavitaaon ke ansh aaye hain.
    Aapko padhte huye achha laga.

    Sainny Ashesh Pariwaar ke sath aapko pyar ke sath....

    Snowa Borno.
    Blog "snowa... the mystic"

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