May 10, 2010

"जीवन की ढलने लगी साँझ" - अटल बिहारी वाजपेयी

"जीवन की ढलने लगी साँझ"

जीवन की ढलने लगी सांझ
उमर घट गई
डगर कट गई
जीवन की ढलने लगी सांझ।

बदले हैं अर्थ
शब्द हुए व्यर्थ
शान्ति बिना खुशियाँ हैं बांझ।

सपनों में मीत
बिखरा संगीत
ठिठक रहे पांव और झिझक रही झांझ।
जीवन की ढलने लगी सांझ।

[ रचनाकार: - अटल बिहारी वाजपेयी  ]

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