August 28, 2010

"उन मुस्कानों की बलि जाऊँ" - वृन्दावनलाल वर्मा

 "उन मुस्कानों की बलि जाऊँ"

उन मुस्कानों की बलि जाऊँ
सती की चिता की दीपशिखा पर जो लहराती रहती हैं
निर्बल के कण-कण में भी जो ज्योति जगाती रहती है
बलिदानों की ध्वजा निरन्तर जो फ़हराती रहती है
उन बलिदानों से बल पाऊँ उन वरदानों से भर पाऊँ
उन मुस्कानों की बलि जाऊँ।

[ रचनाकार: - वृन्दावनलाल वर्मा ]

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