"तमिस्रा हुई गगन में लीन-दिशा"
तमिस्रा हुई गगन में लीन
दिशा ने पाई दृष्टि नवीन।
उदित हुई जब पूर्व के द्वारा
पहिन कर ऊषा मुक्ता हार।
सजाया नेत्रों ने मृछु मार्ग
पलक प्रिय बने पाँवड़े पीन।
सामीरित सौरभ ने ली तान
बजो पुलकित मुकुलों की बीन।
[ रचनाकार: - वृन्दावनलाल वर्मा ]
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