"एक तुम हो"
गगन पर दो सितारे: एक तुम हो,
धरा पर दो चरण हैं: एक तुम हो,
‘त्रिवेणी’ दो नदी हैं! एक तुम हो,
हिमालय दो शिखर है: एक तुम हो,
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- रहे साक्षी लहरता सिंधु मेरा,
- कि भारत हो धरा का बिंदु मेरा ।
- रहे साक्षी लहरता सिंधु मेरा,
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- कला के जोड़-सी जग-गुत्थियाँ ये,
- हृदय के होड़-सी दृढ वृत्तियाँ ये,
- तिरंगे की तरंगों पर चढ़ाते,
- कि शत-शत ज्वार तेरे पास आते ।
- कला के जोड़-सी जग-गुत्थियाँ ये,
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- तुझे सौगंध है घनश्याम की आ,
- तुझे सौगंध भारत-धाम की आ,
- तुझे सौगंध सेवा-ग्राम की आ,
- कि आ, आकर उजड़तों को बचा, आ ।
- तुझे सौगंध है घनश्याम की आ,
तुम्हारी कल्पनाएँ और लघिमा,
तुम्हारी गगन-भेदी गूँज, गरिमा,
तुम्हारे बोल ! भू की दिव्य महिमा
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- तुम्हारी जीभ के पैंरो महावर,
- तुम्हारी अस्ति पर दो युग निछावर ।
- तुम्हारी जीभ के पैंरो महावर,
कि वह कश्मीर, वह नेपाल; गोवा; कि साक्षी वह जवाहर, यह विनोबा,
- प्रलय की आह युग है, वाह तुम हो,
- जरा-से किंतु लापरवाह तुम हो।
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