"हाय, अलीगढ़ !"
हाय, अलीगढ़!हाय, अलीगढ़!
बोल, बोल, तू ये कैसे दंगे हैं
हाय, अलीगढ़!
हाय, अलीगढ़!
शान्ति चाहते, सभी रहम के भिखमंगे हैं
सच बतलाऊँ?
मुझको तो लगता है, प्यारे,
हुए इकट्ठे इत्तिफ़ाक से, सारे हो नंगे हैं
सच बतलाऊँ?
तेरे उर के दुख-दरपन में
हुए उजागर
सब कोढ़ी-भिखमंगे हैं
फ़िकर पड़ी, बस, अपनी-अपनी
बड़े बोल हैं
ढमक ढोल हैं
पाँच स्वार्थ हैं पाँच दलों के
हदें न दिखतीं कुटिल चालाकी
ओर-छोर दिखते न छलों के
बत्तिस-चौंसठ मनसूबे हैं आठ दलों के
[ रचनाकार: - बाबा नागार्जुन ]
अलीगढ़ में दंगे? कब हुए, अखबार में तो कुछ पढ़ा नहीं इसके बारे में
ReplyDeleteसुना तो मैंने भी नहीं हैं.. पर 'बाबा' ने अगर लिखा हैं तो कुछ न कुछ तो सोचा ही होगा... वैसे मुझे लगता हैं - इस कविता में "अलीगड़" शायद हमारे मुस्लमान भाइयो के लिया हैं उन्होंने| सभी दल के नेता दंगो के बाद मुस्लमान का वोट बैंक आपनी तरफ करने की कोसिस करते हैं| शायद ये कविता उसी लिए हो| मैं हिंदी विषय का छात्र नहीं हूँ | इसलिए पुरे विश्वास के साथ कह भी नहीं सकता|
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