March 31, 2010

"जीवन जहाँ" - गोपालदास "नीरज"

"जीवन जहाँ"

जीवन जहाँ खत्म हो जाता !
उठते-गिरते,
जीवन-पथ पर
चलते-चलते,
पथिक पहुँच कर,
इस जीवन के चौराहे पर,
क्षणभर रुक कर,
सूनी दृष्टि डाल सम्मुख जब पीछे अपने नयन घुमाता !
जीवन वहाँ ख़त्म हो जाता !

[ रचनाकार: - गोपालदास "नीरज" ]

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